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विषय नं. 10 - ईश्वर की सुरक्षा का वचन



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 22
श्लोक

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥22॥

अनन्याः चिन्तयन्तः माम् ये जनाः पर्युपासते।
तेषाम् नित्य अभियुक्तानाम् योग क्षेमम् वह्यमि अहम् ।।२२।।

शब्दार्थ

(ये) जो (जनाः) मनुष्य (माम् ) मेरी (पर्युपासते) भली-भाँति प्रार्थना करते हैं। (अनन्याः) किसी और के बारे में (चिन्तयन्तः) सोचे बिना (नित्य ) हमेशा ( अभियुक्तानाम् योग) मेरी भक्ति में लगे हुए हैं (अहम्) मैं (तेषाम् ) उन (लोगों की) (क्षेमम्) रक्षा की जिम्मेदारी (वह्यमि) लेकर चलता हूँ।

अनुवाद

जो मनुष्य मेरी भली-भाँति प्रार्थना करते हैं। किसी और के बारे में सोचे बिना हमेशा मेरी भक्ति में लगे हुए हैं। मैं उन लोगों की रक्षा की ज़िम्मेदारी लेकर चलता हूँ।जो मनुष्य मेरी भली-भाँति प्रार्थना करते हैं। किसी और के बारे में सोचे बिना हमेशा मेरी भक्ति में लगे हुए हैं। मैं उन लोगों की रक्षा की ज़िम्मेदारी लेकर चलता हूँ।

नोट

1. ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, “जो कोई ईश्वर से डरते हुए कर्म करेगा, ईश्वर उसके लिए कठिनाइयों से निकलने का कोई मार्ग पैदा कर देगा और उसे ऐसे मार्ग से रोजी देगा जिधर उसका गुमान भी न जाता हो। जो ईश्वर पर भरोसा करेगा उसके लिए वह काफी है। ईश्वर अपना काम पूरा करके रहता है। ईश्वर ने हर चीज़ के लिए एक तकदीर (अन्दाजा) नियुक्त कर रखा है।" (सूरह अल तलाक-६५, आयत-२ का अंतिम भाग और आयत नं. ३ ) 2.ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, “धर्म में कोई जबरदस्ती नहीं। (ईश्वर के अवतरित ज्ञान द्वारा) धर्म का सत्य मार्ग असत्य मार्ग (गुमराही) से अलग होकर बिल्कुल स्पष्ट हो गया है। (तो जिसका दिल चाहे इसे माने और न चाहे तो न माने किन्तु) जो व्यक्ति मूर्तियों में श्रद्धा न रखे और ईश्वर में श्रद्धा रखे उसने मजबूत सहारा थाम लिया है। जो कभी टूटने का नहीं और ईश्वर सुनने और जानने वाला है, जो ईश्वर में श्रद्धा रखते हैं ईश्वर उनका संरक्षक मित्र है। वह (ईश्वर) उन्हें अंधेरों (अज्ञानता) से निकाल कर प्रकाश (सत्य, ज्ञान और मार्ग) की ओर लाता है और जो ईश्वर में श्रद्धा नहीं रखते उनके संरक्षक-मित्र शैतान (असूर) हैं, वे उन्हें प्रकाश से निकालकर अंधेरों की ओर ले जाते हैं। यही नरक में जाने वाले हैं, वे उसमें सदैव रहेंगे।” (सूरे अल-बकरह (२) आयत २५६ २५७)