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विषय नं. 12 - मनुष्य के गुण जो ईश्वर की महानता दर्शाते है



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 6
श्लोक

महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च। इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः ||6||

महा-भूतानि अहकारः बुद्धिः अव्यक्तम् एव च । इन्द्रियाणि दश-एकम् च पन्च च इन्द्रिय-गो चराः
।।६।।

शब्दार्थ

(मनुष्य की विशेषताएं यह है कि) (एव) नि:संदेह (महा-भूतानि ) वह प्राणियों में श्रेष्ठ है (अहकारः) उसमें अपने श्रेष्ठ होने की भावना है। (बुद्धिः) वह बुद्धिमान है (अव्यक्तम् ) उसमें बहुत से छुपे हुए गुण हैं (जो और किसी प्राणी में नहीं) (इन्द्रियाणि दश-एकम्) उसमें ग्यारह इच्छाएं हैं। (च) और (पन्च च इन्द्रिय-गो-चराः) और पांच संवेदी अंग (Sensory organs) हैं।

अनुवाद

( मनुष्य की विशेषताएं यह है कि) नि:संदेह वह प्राणियों में श्रेष्ठ है। उसमें अपने श्रेष्ठ होने की भावना है। वह बुद्धिमान है। उसमें बहुत से छुपे हुए गुण हैं (जो और किसी प्राणी में नहीं)। उसमें ग्यारह इच्छाएं हैं। और पांच संवेदी अंग (Sensory organs ) हैं ।