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विषय नं. 13 - ईश्वर में जन्म से श्रद्धा का गुण



अध्याय नं. 17 ,श्लोक नं. 2
श्लोक

श्रीभगवानुवाच त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु||2||

श्री भगवान उवाच त्रि-विधा भवति श्रद्धा देहिनाम् सा ।
स्व-भाव-जा सात्विकी राजसी च एव तामसी च इति ताम् शृणु || २ ||

शब्दार्थ

(श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने श्री कृष्ण के माध्यम से कहा (त्रि-विधा) (जिस तरह) तीन गुण (सत्व, रजो, तमो गुण) (देहिनाम्) शरीर वाले (मनुष्य में) (भवति) उत्पन्न किए गए हैं। (सा) (इसी प्रकार) वह (श्रद्धा) (एक ईश्वर में) श्रद्धा (जा) जन्म से ही (स्व-भाव) (मनुष्य के) स्वभाव (में उत्पन्न किया गया है) (शृणु) सुनो (और अच्छी तरह जान लो कि जिस तरह) (सात्विकी) सत्व गुण (राजसी) रजो गुण (च) और (तामसी) तमो गुण (मनुष्य में है) (एव) नि:संदेह (ताम्) वह (एक ईश्वर में श्रद्धा भी) (इति) इसी तरह ( मनुष्य के स्वभाव में जन्म से है।)

अनुवाद

ईश्वर ने ( श्री कृष्ण के माध्यम से) कहा, (जिस तरह) तीन गुण सत्व, रजो, तमो वाले मनुष्य में उत्पन्न किए गए हैं। इसी प्रकार वह एक ईश्वर में श्रद्धा भी जन्म से ही गुण शरीर मनुष्य के स्वभाव में उत्पन्न किया गया है। सुनो और अच्छी तरह जान लो कि जिस तरह सत्व गुण, रजो गुण, और तमो गुण (मनुष्य में है), नि:संदेह, वह एक ईश्वर में श्रद्धा भी इसी तरह मनुष्य के स्वभाव में जन्म से है ।