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विषय नं. 18 - प्रलय के दिन फिर से जीवित होने का वर्णन



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 8
श्लोक

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः। भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ॥8॥

प्रकृतिम् स्वाम् अवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः । भूत-ग्रामम् इमम् कृत्सनम् अवशम् प्रकृतेः वशात् ।।८।।

शब्दार्थ

(स्वाम् ) मेरी अपनी (प्रकृतिम्) प्रकृति के (अवष्टभ्य) सहारे (भूत) प्राणियों के (ग्रामम् ) विभिन्न समुदाय का ( पुनः पुनः ) बार-बार (विसृजामि) निर्माण कर रहा हूँ (इमम्) (इसी प्रकार) इन सबका (अवशम्) (प्रलय के समय दोबारा) अवश्य (कृत्सनम्) निर्माण करूंगा (प्रकृते) (कारण कि यह मेरी निर्माण करने वाली) प्रकृति के (वशात्) वश में है।

अनुवाद

मेरी अपनी प्रकृति के सहारे प्राणियों के विभिन्न समुदाय का बार-बार निर्माण कर रहा हूँ। (इसी प्रकार) इन सबका (प्रलय के समय दोबारा) अवश्य निर्माण करूंगा। (कारण कि यह मेरी निर्माण करने वाली) प्रकृति के वश में है।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा, “क्या (इन्कार करने वाले) मनुष्य ने नहीं देखा कि हमने उसे वीर्य से पैदा किया? फिर क्या देखते हैं कि वह प्रत्यक्ष विरोधी झगड़ालू बन गया और उसने हम पर फबती कसी (अलोचना की) और अपने जन्म को भूल गया। कहता है, कौन हड्डियों में जान डालेगा, जबकि वे जीर्ण शीर्ण हो चुकी होंगी? कह दो, उनमें वही जान डालेगा जिसने उनको पहली बार पैदा किया। वह तो सब प्रकार को पैदा करना जानता है। वही है जिसने तुम्हारे लिए हरे-भरे वृक्ष से आग पैदा कर दिया, तो लगे हो तुम उससे जलाने। क्या जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया उसे इसकी सामर्थ्य नहीं कि उन जैसों को पैदा कर दे? क्यों नहीं, जबकि वह महान सृष्टा अत्यन्त ज्ञानवान है। उसका मामला तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करता है तो उससे कहता है, हो जा! और वह हो जाती है। अतः महिमा है उसकी, जिसके हाथ में हर चीज़ का पूरा अधिकार है। और उसी की ओर तुम लौटकर जाओगे।” (पवित्र कुरआन सूरह-३६, आयत-७७-८३)