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विषय नं. 20 - अन्य लोक (मृत्यु के बाद जीवन) का वर्णने



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 22
श्लोक

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति
नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।22।।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणति नरः अपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि
संयाति नवानि देही ।।२२।।

शब्दार्थ

( यथा) जैसे मनुष्य (जीर्णानि) पुराने (वांसांसि ) कपड़े (विहाय ) त्याग देता है (अपराणि) और दुसरे ( नवानि) नये कपड़े (गृहणति) धारण करता है। (तथा ) वैसे ही (यह रुह) (जीर्णानि) पुराना (शरीराणि )

अनुवाद

जैसे मनुष्य पुराने कपड़े त्याग देता है और दुसरे नये कपड़े धारण करता है। वैसे ही (यह रुह)