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विषय नं. 21 - मोक्ष का वर्णने



अध्याय नं. 4 ,श्लोक नं. 32
श्लोक

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे । कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥32॥

एवम् बहु-विधाः यज्ञाः वितताः ब्रह्मणः मुखे । कर्म-जान् विद्धि तान् सर्वान् एवम् ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ।। ३२ ॥

शब्दार्थ

(ब्राह्मण-मुखे) वेदों की वाणी में (एवम् ) इस प्रकार के (बहुविद्या) बहुत तरह के (यज्ञा वितता) ईश्वर की प्रार्थना के वर्णन हैं। (विद्धि) (हे अर्जुन, इस सत्य को) जानो की (कर्म) सत्कर्म करने से (जान) वह हमारे आचरण में जीवित होते हैं ( एवम् ) इस प्रकार (सर्वान) सभी (ज्ञात्वा) ईश्वर की प्रार्थना के ज्ञान को जानकर (तान) उन पर अमल (अभ्यास) करके (विमोक्ष्यसे) तुम अपने पापों से मुक्ति पाओगे।

अनुवाद

वेदों की वाणी में इस प्रकार के बहुत तरह के ईश्वर की प्रार्थना के वर्णन हैं। (हे अर्जुन, इस सत्य को) जानो की सत्कर्म करने से वह हमारे आचरण में जीवित होते हैं। इस प्रकार सभी ईश्वर की प्रार्थना के ज्ञान को जानकर उन पर अमल (अभ्यास) करके तुम अपने पापों से मुक्ति पाओगे।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, ईश्वर को तुम्हें यातना देकर क्या करना है, यदि में तुम कृतज्ञता दिखलाओ और उसमें श्रद्धा रखों? ईश्वर तो कदरदाँ (महत्व को समझने वाला) और (सब कुछ) जानने वाला है। (सूरे अन निसा-(४), आयत-(१४७))