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विषय नं. 24 - जीवन में परीक्षा का वर्णने



अध्याय नं. 7 ,श्लोक नं. 14
श्लोक

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥14॥

दैवी हि एषा गुण-मयी मम माया दुरत्यया । माम् एव ये प्रपद्यन्ते मायाम् एताम् तरन्ति ते ।।१४।।

शब्दार्थ

(हि) नि:संदेह (मयी) मेरे द्वारा बनाई गई) (एषा) इन (तीनों) (देवी) दिव्य (गुण) गुणों (पर आधारित) (मम्) मेरे (माया) परीक्षा को ( दुरत्यया) पार करना बहुत कठिन है। (ये) (किन्तु) जो लोग (माम) मेरी (प्रपद्यन्ते) शरण में आ जाते हैं (ते) वह (एताम् ) इस (मायाम् ) परीक्षा को (एव) नि:संदेह (तरन्ति) पार कर जाते हैं।

अनुवाद

नि:संदेह मेरे द्वारा बनाई गई ) इन दिव्य गुणों ( पर आधारित) मेरे परीक्षा को पार करना बहुत कठिन है। (किन्तु) जो लोग मेरी शरण में आ जाते है वह इस परीक्षा को नि:संदेह पार कर जाते हैं।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा है कि, हम ज़रुर तुम्हें डर, भूख, जान-माल की हानियों और आमदनियों के घाटे में डाल कर तुम्हारी परीक्षा लेंगे। (सूरे अल-बकरा २, आयत १५५)