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विषय नं. 25 - स्वर्ग का वर्णने



अध्याय नं. 8 ,श्लोक नं. 16
श्लोक

आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन। मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥16॥

आ-ब्रह्म-भुवनात् लोकाः पुनः आवर्तिनः अर्जुन। माम् उपेत्य तु कौन्तेय पुनः जन्म न विद्यते ।।१६।।

शब्दार्थ

(अर्जुन) हे अर्जुन (ब्रह्म) ईश्वर (के) (भुवनात) स्थान (स्वर्ग के) (आ) चारों ओर (लोकाः) जो लोक हैं (८४ लाख जो नर्क हैं) (पुनः आवर्तिनः) वहाँ चक्कर चलता रहता है। (शरीर के नष्ट होने का और नया शरीर मिलने का) (तु) किन्तु (कौन्तेय) हे अर्जुन ( माम) मुझको (ईश्वर को) (उपेत्य) प्राप्त करने के बाद ( मेरे स्वर्ग को प्राप्त करने के बाद) (पुनःजन्म) फिर नया जीवन (न) नहीं (विद्यते) है। (अर्थात जिसे स्वर्ग मिल गया तो वह सदैव जीवित रहेगा)।

अनुवाद

हे अर्जुन! ईश्वर (के) स्थान (स्वर्ग के) चारों ओर जो लोक हैं (८४ लाख जो नर्क हैं) वहाँ चक्कर चलता रहता है (शरीर के नष्ट होने का और नया शरीर मिलने का)। किन्तु हे अर्जुन, मुझको (ईश्वर को) प्राप्त करने के बाद (मेरे स्वर्ग को प्राप्त करने के बाद) फिर नया जीवन नहीं है। (अर्थात जिसे स्वर्ग मिल गया, तो वह सदैव जीवित रहेगा) ।

नोट

स्वर्ग के चारो ओर नरक है । नरक के उपर एक पुल है जिसे पुले- सिरात कहते है । हर व्यक्ति को नरक के उपर से स्वर्ग में जाना है। इस विषय में कुरान की एक आयत इस तरह है। और तुम में से हर व्यक्ति को नरक के उपर से गुजरना है। यह एक निश्चय पाई हुई बात है, जिसे पूरा करना तेरे रब (ईश्वर) के जिम्मे है। (सूरह मरयम १९, आयत ७१)