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विषय नं. 27 - नरक का वर्णने



अध्याय नं. 1 ,श्लोक नं. 41
श्लोक

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः । स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ॥41॥

अधर्म अभिभावत् कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुल-स्त्रियः । खीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्ण सडकर ।।४१।।

शब्दार्थ

(कृष्ण) हे कृष्ण ! (अधर्म ) अधर्म के (अभिभयात) अधिक बढ़ जाने से (कुल) कुल की (स्त्रि) स्त्रियाँ ( प्रदुष्यन्ति ) दूषित हो जाती हैं। (वार्ष्णेय) हे कृष्ण हे (स्त्रीषु) स्त्रियों के (दुष्टासु ) दूषित होने पर (वर्ण- सड़कर) वर्ण संकर (दोगले) (जायते) पैदा हो जाते हैं।

अनुवाद

हे कृष्ण! अधर्म के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं। हे कृष्ण! स्त्रियों के दूषित होने पर वर्ण संकर (दोगले) पैदा हो जाते हैं।