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विषय नं. 28 - देवता



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 11
श्लोक

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः । परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥11॥

देवान् भावयता अनेन ते देवाः भावयन्तु वः परस्परम् भावयन्तः श्रेयः परम् अवाप्स्यथ ||११||

शब्दार्थ

(अनेन ) ( उस ईश्वर की प्रार्थना के आदेश) अनुसार (ते) वे (देवान्) देवता भी (भावयत) ईश्वर की प्रार्थना करते हैं (व:) तुम (मनुष्य भी) (देवाः) देवताओं के समान (भावयन्तु) (ईश्वर की) प्रार्थना करो (परस्परम) देवताओं और मनुष्य की संयुक्त प्रार्थना से (परम्) महान ईश्वर

अनुवाद

(उस ईश्वर की प्रार्थना के आदेश) अनुसार वे देवता भी ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। तुम (मनुष्य भी) देवताओं के समान (ईश्वर की)

नोट

पवित्र कुरआन मे लिखा है, “जानदार जो आकाशों में है और जो धरती पर है सब ईश्वर को सज्दा करते हैं, और फरिश्ते भी, और वे (फरिश्ते) अपने आपको बड़ा नहीं समझते। अपने ईश्वर से जो उनके ऊपर है डरते रहते हैं, और उन्हें जो आदेश दिया जाता है करते हैं।” (सूरे अन नहल (१६) आयत (४९/५०)) ● मानवजाति के लिए ईश्वर के आदेश निम्नलिखित हैं। “अपने ईश्वर को प्रात:काल और संध्या के समय याद किया करो, अपने मन में गिड़गिड़ाते और ड़रते हुए, और धीमी आवाज़ के साथ। और उन लोगों में से न हो जाओं जो अचेतावस्था (गफलत) में पड़े हुए है।' (सूरे-अल आराफ (७) आयत २०५ ) ● (जैसे भगवान शब्द ईश्वर, पुण्य और आदरणीय व्यक्ति और देवताओं के लिए उपयोग होता है। इसी प्रकार देवता शब्द भी देवताओं और फरिश्तों दोनों के लिए उपयोग होता है।) भगवान शब्द को समझने के लिए नोट नं. N १० पढ़िए । नालंदा विशाल शब्द सागर कोश (पेज नं. ६१४) में देवता के दो अर्थ है। १) स्वर्ग में रहने वाले वे अमर प्राणी जो पूज्य माने जाते है। २) सूर (फरिश्ते)