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विषय नं. 29 - स्वर्ग में रहने वाले प्रणीयो का वर्णने



अध्याय नं. 11 ,श्लोक नं. 5
श्लोक

श्रीभगवानुवाच
पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः । नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥5॥

पश्य मे पार्थ रुपाणि शतशः अथ सहस्त्रशः। नाना-विधानि दिव्यानि नाना वर्ण आकृतीनि च।।५।।

शब्दार्थ

( श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने ( श्री कृष्णजी के माध्यम से) कहा (पार्थ) हे अर्जुन (अथ) अब (मे) मेरे (नाना) अलग-अलग (वर्ण) रंग (च) और (नाना) अलग-अलग ( विधानि) प्रकार की (दिव्यानि) दिव्य (आकृतीनि) आकार के (शतशः) सैंकडों (सहस्रशः) (और) हजारों (रुपाणि) महान रचनाओं को (परम) देखो।

अनुवाद

ईश्वर ने ( श्री कृष्णजी के माध्यम से) कहा, हे अर्जुन, अब मेरे अलग अलग रंग और अलग- अलग प्रकार की दिव्य आकार के सैंकडों (और) हजारों महान रचनाओं को देखो।