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विषय नं. 31 - भाग्य



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

श्रीभगवानुवाच प्रकृतिं पुरुषं चैव वियनादी उभावपि । विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् ॥20॥

प्रकृतिम् पुरुषम् च एव विद्धि अनादी उभी अपि । विकारान् च गुणान् च एव विद्धि प्रकृति सम्भवान्
।। २० ।।

शब्दार्थ

(एरां) नि:संदेह (प्रकृतिम्) भाग्य (च) और (पुरुषम्) मनुष्य (उभौ) दोनों भी (अनादि ) (eternal) ईश्वर से (विद्धि) जानो (विकारान्) मनुष्य के शरीर में जो बदलाव होता है (च) और ( गुणान्) मनुष्य में जो गुण हैं (च) निःसंदेह (प्रकृति) (ईश्वर की) प्राकृतिक शक्ति से (सम्भवान्) उत्पन्न किए जाते हैं (विद्धि) ऐसा जानो।

अनुवाद

नि:संदेह भाग्य और मनुष्य दोनों भी ( eternal) अनादि ईश्वर से जानो। मनुष्य के शरीर में जो बदलाव होता है और मनुष्य में जो गुण हैं, नि:संदेह (ईश्वर की) प्राकृतिक शक्ति से उत्पन्न किए जाते हैं ऐसा जानो।