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विषय नं. 34 - संगम (शिर्क) के कारण



अध्याय नं. 4 ,श्लोक नं. 12
श्लोक

काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः । क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ॥12॥

काड् क्षन्तः कर्मणाम् सिद्धिम् यजन्ते इह देवताः। क्षिप्रम् हि मानुषे लोके सिद्धिः भवति कर्म
जा।। १२ ।।

शब्दार्थ

(लौके) इसी संसार में (कर्म-जा) कर्मों से उत्पन्न होने वाले) (सिद्धि) अच्छे फल (मिल जाए, अर्थात धन, संपत्ती, उन्नती मिले) (हि) इस (लिए) (इह) इस लोक में (मानुषे) मनुष्य (सिद्धिम) कर्मों के अच्छे फल ( क्षिप्रम) जल्दी से मिलने की ( काडषन्त ) चाह में (देवता) देवताओं की (यजन्ते) उपासना करने लगते हैं।

अनुवाद

इसी संसार में कर्मों से उत्पन्न (होने वाले) अच्छे फल (मिल जाए, अर्थात धन, संपत्ती, उन्नती मिले)। इस (लिए) इस लोक में मनुष्य कर्मों के अच्छे फल जल्दी से मिलने की चाह में देवताओं की उपासना करने लगते हैं। दिव्य ज्ञान का महत्त्व

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में शिर्क (संगम) करने के कारण के बारे में इस तरह कहा है। “इन्होंने ईश्वर के सिवा और इलाह (पूज्य) बना रखा है ताकि वे इनकी शक्ति (का कारण) हों।” (सूरे मरयम-१९, आयत ८१)