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विषय नं. 35 - संगम की मनाई



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 45
श्लोक

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन । निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥45॥

त्रै गुण्य विषयाः वेदाः निखै त्रे-गुण्य भव अर्जुन। निर्द्वन्द्वः नित्य-सत्त्व-स्थः निर्योग क्षेमः आत्मवान् ।।४५।।

शब्दार्थ

(वेदाः) पवित्र वेदों में (त्रै) तीन (गुण्य) गुण (सात्विक, तमस, रजस) (विषयाः) का वर्णन है (अर्जुन) हे अर्जुन (निखै-गुण्य-भव) इन तीनों गुणों को छोड़ दो (निर्द्वन्द्वः) सुख-दुःख परेशान होना छोड़ दो। (सत्त्व) ईश्वर के आदेश का (नित्य) हमेशा (स्थ:) दृढ़ता से पालन करो। (क्षेमः) केवल अपने शांती और उन्नती के सुख ही कार्य में (निर्योग) मत लगे रहो जनकल्याण के लिए भी प्रयास करो (आत्मवानः) और केवल ईश्वर पर निर्भर रहने वाला बनो।

अनुवाद

पवित्र वेदों में तीन गुण (सात्विक, तमस, रजस) का वर्णन है। हे अर्जुन, इन तीनों गुणों को छोड़ दो। सुख-दुःख से परेशान होना छोड़ दो। ईश्वर के आदेश का हमेशा दृढ़ता से पालन करो। केवल अपने सुख शांती और उन्नती के ही कार्य में मत लगे रहो। जनकल्याण के लिए भी प्रयास करो और केवल ईश्वर पर निर्भर रहने वाला बनो।

नोट

इस श्लोक को समझने के लिए अध्याय नं. १४ का परिचय पढ़िये। जिसमें अतीत गुण का वर्णन है।