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विषय नं. 36 - संगम करने वालो के लिए स्पष्टिकरण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 16
श्लोक

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम् । मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् ॥16॥

अहम् क्रतुः अहम् यज्ञः स्वधा अहम् औषधम् । मन्त्रः अहम् अहम् एव आज्यम् अहम् अग्निः अहम् हुतम् ।।१६।।

शब्दार्थ

(अहम् ऋतु) में वैदिक विधि हूँ (अर्थात वेदों के अनुसार जो प्रार्थनाएं की जाती हैं वह मेरे लिए हैं) (अहम यज्ञः) वह मैं हूँ जिसके लिए यज्ञ किया जाता है। (स्वधा अहम् ) वह वस्तु जो यज्ञ के समय अग्नि में डाली जाती है, वह भी मेरी रचना है। (अहम औषधम् ) वह मैं हूँ जो औषधी में उपचार प्रभाव ( Healing effect) पैदा करता है। (मन्त्रः अहम्) वह मैं हूँ जो मंत्रो में प्रभाव पैदा करता है। (अहम् अग्निः ) वह अग्नि मेरी ही रचना है जिसे तुम यज्ञ के समय जलाते हो। ( एवं) नि:संदेह ( अहम आज्यम) मैंने ही घी की रचना की है, जिसे तुम यज्ञ के समय अग्नि में ड़ालते हो। (अहम हुतम्) यज्ञ के समय जो भी वस्तु तुम हवन में ड़ालते हो वह मेरे द्वारा ही तुम्हें दी गई है।

अनुवाद

(दूसरे समूह के भ्रम को ईश्वर ने अगले चार श्लोकों में स्पष्ट किया है, वह निम्नलिखित है।) मैं वैदिक विधि हूँ (अर्थात वेदों के अनुसार जो प्रार्थनाएं की जाती है वह मेरे लिए हैं ) । वह मैं हूँ, जिसके लिए यज्ञ किया जाता है। वह वस्तु जो यज्ञ के समय अग्निकुंड में डाली जाती है, वह भी मेरी रचना है। वह मैं हँ जो औषधी में उपचार प्रभाव (Healing effect) पैदा करता है। वह मैं हूँ, जो मंत्रो में प्रभाव पैदा करता है। वह अग्नि मेरी ही रचना है, जिसे तुम यज्ञ के समय जलाते हो। नि:संदेह मैंने ही घी की रचना की है जिसे तुम यज्ञ के समय अग्नि में डालते हो, यज्ञ के समय जो भी वस्तु तुम हवन में ड़ालते हो वह मेरे द्वारा ही तुम्हें दी गई है।

नोट

वह (ईश्वर) अविनाशी है (ईश्वर सदैव जीवित रहेगा, उसे मृत्यु नहीं) उसके सिवा कोई पूज्य प्रभु नहीं। अतः उसी को पुकारो, धर्म को उसी के लिए विशुद्ध करके । सारी प्रशंसा ईश्वर ही के लिए है, जो सारे संसार का रब ( पालनहार) है। (सुरे अल मोमिन-४०, आयत ६५)