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विषय नं. 37 - नरक से कोन बचेगा?



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 40
श्लोक

यनेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवातो न विद्यते । स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥40॥

न इह अभिक्रम नाशः अस्ति प्रत्यवायः न विद्यते । सु-अल्पम् अपि अस्य धर्मस्य त्रायते महत्ः भयात् ।।४०।।

शब्दार्थ

(इह) इस धर्म के ज्ञान के साथ (अभिक्रम) जो कोई कर्म करता है तो (न) ना (नाशः अस्ति) उसका नाश होता है (प्रत्यवायः) (न विद्यते) न वह नरक में गिरता है। (अपि) नि:संदेह, (धर्मस्य ) धर्म में (सु-अल्पम् ) थोड़ा सा काम (अस्य) जो धर्म ज्ञान के साथ किया जाता है। (महत्:) वह नरक में जाने के बड़े (भयात्) भय से (त्रायते) मुक्त कर देता है।

अनुवाद

इस धर्म के ज्ञान के साथ जो कोई कर्म करता है तो ना उसका नाश होता है, न वह नरक में गिरता है। नि:संदेह, धर्म में थोड़ा सा काम जो धर्म ज्ञान के साथ किया जाता है, वह नरक में जाने के बड़े भय से मुक्त कर देता है।