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विषय नं. 38 - दिव्य मार्गदर्शन



अध्याय नं. 10 ,श्लोक नं. 10
श्लोक

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥10॥

तेषाम् सतत युक्तानाम् भजताम् प्रीति पूर्वकम् ।
दुमि बुद्धि-योगम् तम् येन माम् उपयान्ति ते ।।१०।।

शब्दार्थ

(तेषाम् ) उन (मुनि / पवित्र व्यक्तियों को ) जो ( प्रीति -पूर्वकम् ) प्रेमपूर्वक (सतत ) सदैव ( भजताम् ) मेरी प्रार्थना म ( बुद्धि-योगम् ) (मुक्तानाम्) लगे हुए हैं। (तम्) उनको (मैं) मुझसे जुड़ी रहने वाली बुद्धि (ददामि) देता हूँ (येन) जिससे (ते) वह (माम ) मुझे (उपयान्ति) पा लेते है।

अनुवाद

उन मुनि / पवित्र व्यक्तियों को जो प्रेमपूर्वक सदैव मेरी प्रार्थना में लगे हुए हैं। उनको मैं मुझसे जुड़ी रहने वाली बुद्धि देता हूँ, जिससे वह मुझे पा लेते हैं।

नोट

पवित्र कुरआन में लिखा है कि ईश्वर उन लोगों को, “जो उसमें श्रद्धा रखते हैं,” सत्य वचन (सही और पक्की बात पर ) सांसारिक जीवन में भी दृढ़ता से स्थित रखता है। और अन्य लोक में भी रखेगा। (सुरे- इबराहीम (१४) आयत (२७)) (इसका अर्थ है कि जो एक ईश्वर में श्रद्धा रखते हैं तो मृत्यु के समय जो कि बहुत कठिन समय होता है, वह व्यक्ति ईश्वर का नाम लेगा। और मृत्यु के बाद भी जब फरिश्ते उससे ईश्वर, उसके धर्म और पैगम्बर के बारे में पुछेंगे तो ईश्वर उसे सत्य कहने की सद्बुद्धि देगा। (उसे सत्य पर दृढ़ता से स्थित रखेगा। जो कि मृत्यु के बाद स्वर्ग मिलने के लिए अतिआवश्यक है।)