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विषय नं. 40 - दान का वर्णन



अध्याय नं. 17 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ||20||

दातव्यम् इति यत् दानम् दीयते अनुपकारिणे ।
दिशे काले च पात्रे च तत् दानम् सात्विकम्स्मृतम् ।।२०।।

शब्दार्थ

(दानम्) दान (दीयते) जो दिया जाए (दातव्यम्) वह देने के योग्य हो (बेकार वस्तु ना हो) (अनुपकारिणे) (ऐसे को दिया जाए) जो उसका बदला नहीं दे सकता (अर्थात, असहाय, निर्धन को दिया जाए) (दिशे) उचित स्थान पर जाए (काले) उचित समय पर दिया जाए (च) और (पात्र) दान पाने के योग्य व्यक्ति को दिया जाए (इति) इस तरह (यत्) जो (दान दिया जाता है) (तत्) वह (दानम्) दान (सात्विकम्) सात्विक गुण से प्रेरित (स्मृतम्) कहा जाता है।

अनुवाद

(अगले तीन श्लोकों में अपने दान देने के स्वभाव से अपने आपको पहचानने की शिक्षा हैं :) दान जो दिया जाए, वह देने के योग्य हो बेकार वस्तु ना हो। ऐसे को दिया जाए जो उसका बदला नहीं दे सकता अर्थात, असहाय, निर्धन को दिया जाए। उचित स्थान पर दिया जाए। उचित समय पर दिया जाए। और दान पाने के योग्य व्यक्ति को दिया जाए। इस तरह जो दान दिया जाता है वह दान सात्विक गुण से प्रेरित कहा जाता है।

नोट

दान के बारे में पवित्र कुरआन में निम्नलिखित आदेश हैं। (हे मुहम्मद (स.)) लोग तुमसे पूछते हैं कि हम किस प्रकार का धन दान करें? कह दो कि जो माल भी तुम खर्च करो वह माता-पिता, अनाथों और मुसाफिरों (यात्रियों) के लिए है। और जो भलाई भी तुम करोगे, ईश्वर उसे भली-भाँति जान लेगा। (सूरह अल बकरह- २, आयत २१५)