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विषय नं. 41 - त्याग का वर्णन



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 1
श्लोक

अर्जुन उवाच
सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् । त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ॥1॥

अर्जुन उवाच, संन्यासस्य महाबाहो तत्वम् इच्छामि वेदितुम् । त्यागस्य च हृषीकेश पृथक केशि- निषूदन ।।

शब्दार्थ

(अर्जुन उवाच) अर्जुन ने कहा, (महाबाहो) हे महाबाहो (श्री कृष्ण) (हृषीकेश) हे हृषीकेश (श्री कृष्ण) (केशि-निषूदन) हे केशी को प्रजीत करने वाले (श्री कृष्ण ) (सन्यासस्य) सन्यास (तत्त्वम्) की वास्तविकता (सत्य, सच्चाई) के बारे में (च) और (त्यागस्य) त्याग की वास्तविकता (सत्य, सच्चाई के बारे में) (पृथक) अलग अलग (वेदितुम) जानने की इच्छामि) इच्छा रखता हूँ।

अनुवाद

अर्जुन ने कहा, हे महाबाहो ( श्री कृष्ण) ! हे हृषीकेश (श्री कृष्ण)! हे केशी को प्रजीत करने वाले (श्री कृष्ण)! सन्यास की वास्तविकता (सत्य, सच्चाई) के बारे में, और त्याग की वास्तविकता (सत्य, सच्चाई) के बारे में अलग अलग जानने की इच्छा रखता हूँ।