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विषय नं. 45 - दृष्ट निश्चय का वर्णन



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 33
श्लोक

धृत्या यया धारयते मनः प्राणेन्द्रियक्रियाः । योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥33॥

धृत्या यया धारयते मनः प्राण इन्द्रिय क्रियाः । योगेन अव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्विकी ।। ३३ ।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे पार्थ (अर्जुन) (धृत्या) दृढ निश्चय (यया) जो (अव्यभिचारिण्या) दृढ़ता से वश में रखे (मन:) मन (को) (प्राण) अपने प्राण की सुरक्षा के लिए (इन्द्रिय) अपनी इच्छाओं के अनुसार (क्रिया:) (आनंद का अनुभव देने वाले) कर्म से बचने के लिए (योगेन) ईश्वर से जोड़ने वाली प्रार्थना में (धारयते) संयम के साथ लगे रहने के लिए (सा) वह (धृतिः) दृढ निश्चय (सात्त्विकी) सात्त्विक गुण से प्रेरित कहा जाएगा।

अनुवाद

हे पार्थ (अर्जुन)! दृढ निश्चय जो दृढ़ता से वश में रखे मन को अपने प्राण की सुरक्षा के लिए,अपनी इच्छाओं के अनुसार आनंद का अनुभव देने वाले कर्म से बचने के लिए, ईश्वर से जोड़ने वाली प्रार्थना में संयम के साथ लगे रहने के लिए, वह दृढ निश्चय सात्विक गुण से प्रेरित कहा जाएगा।