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विषय नं. 48 - आत्म-संयम



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 60
श्लोक

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः । इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः |60||

यततः हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः । इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभम् मनः ।।६०।।

शब्दार्थ

(हि) नि:संदेह! (ईश्वर की कृपा दृष्टि इस कारण भी अनिवार्य है क्योंकि) (कौन्तेय) हे अर्जुन, (इन्द्रियाणि) इच्छाए ( आनंद लेने की मन की चाह) (प्रसभम्) इतनी बलवान है कि वह (विपच्चित) दृढ संकल्प वाले (पुरुषस्य) मनुष्य के (अपि) (मन को) भी (हरन्ति) बलपूर्वक पराजित कर देती है (प्रसभम्) जो इसे बलपूर्वक वश में करने का (यतत) प्रयत्न करता है।

अनुवाद

नि:संदेह! (ईश्वर की कृपा दृष्टि इस कारण भी अनिवार्य है क्योंकि) हे अर्जुन! इच्छाए (आनंद लेने की मन की चाह) इतनी बलवान है कि वह दृढ संकल्प वाले मनुष्य के ( मन को) भी बलपूर्वक पराजित कर देती है, जो इसे बलपूर्वक वश में करने का प्रयत्न करता है।