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विषय नं. 51 - अपेक्षित सत्कर्मों का वर्णन



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 51
श्लोक

बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च । शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च ॥51॥

बुद्धया विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च । शब्द-आदीन् विषयान् त्यक्त्वा राग द्वेषौ च ।। ५१ ।।

शब्दार्थ

(बुद्धया विशुद्धया युक्तो) अपने मन को संगम (शिर्क) से शुद्ध रखो और ईश्वर की प्रार्थना में लगे रहो। (धृत्यात्मानं नियम्य च ) दृढ़ता से अपने आपको धार्मिक नियमों के पालन में स्थित रखो (शब्द- आदीन् विषयान् त्यक्त्वा) मन को आनंद देने वाले वस्तु और काम और ज्यादा बातचीत छोड़ दो। (राग द्वेषौ व्युदस्य च) क्रोध और किसी से नफरत करने को एक तरफ रख दो (छोड दो ) क्रोध और किसी से नफरत करने को एक तरफ रख दो (छोड दो )

अनुवाद

व्युदस्य (निम्नलिखित कर्म करने से मनुष्य ईश्वर की कृपादृष्टि प्राप्त करता है) अपने मन को संगम (शिर्क) से शुद्ध रखो और ईश्वर की प्रार्थना में लगे रहो। दृढ़ता से अपने आप को धार्मिक नियमों के पालन में स्थित रखो। मन को आनंद देने वाले वस्तु और काम और ज्यादा बातचीत छोड़ दो। क्रोध और किसी से घृणा करने को एक तरफ रख दो अर्थात छोड दो ) ।

नोट

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