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विषय नं. 53 - सामाजिक समानता



अध्याय नं. 5 ,श्लोक नं. 18
श्लोक

विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥18॥

विद्या विनय सम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि । शुनि च एव श्वपाके च पण्डिताः सम-दर्शिनः ।।१८।।

शब्दार्थ

(विद्या) वह व्यक्ति जो दिव्य ज्ञान को (सम्पन्ने) संपूर्ण रुप से जानता है। (विनय) और जो नर्म स्वभाव का है। (ब्राह्मणे) (वह) (ब्राह्मण) (गवि) गाय ( हास्तिनि) हाथी (शुनि) कुत्ता (च) और (श्वपाके) कुत्ता खाने वाले (च) और (पण्डिताः) ज्ञानी पंडित (एव) को भी (सम दर्शिनः) एक दृष्टि से देखता है।

अनुवाद

वह व्यक्ति जो दिव्य ज्ञान को संपूर्ण रूप से जानता हैं। और जो नर्म स्वभाव का है। (वह) ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता, और कुत्ता खाने वाले, और ज्ञानी पंडित को भी एक दृष्टि से देखता है। (अर्थात सब ईश्वर की रचना हैं, और सबको जिने का समान अधिकार है।)

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा,हे लोगों! हमने तुम्हें पैदा किया एक पुरुष और स्त्री से, और तुम्हारी बहुत सी जातियाँ और वंश बनाये, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचान सको। ईश्वर के यहाँ तो तुममें सबसे ज्यादा आदरणीय वह हैं जो तुममें सबसे अधिक ईश्वर से ड़रने वाला है। (सूरे अल-हुजूरात (४९) आयत-१३)