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विषय नं. 55 - वर्णाश्रम धर्म



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 41
श्लोक

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप । कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः ॥41॥

ब्राह्मण क्षत्रिय विशाम् शूद्राणाम् च परन्तप । कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभाव प्रभवैः गुणैः ।।४१ ।।

शब्दार्थ

(ब्राह्मण) ब्राह्मण (क्षत्रिय) क्षत्रि (विशाम्) वैश्य (च) और (शूद्राणाम्) शूद्र (परन्तप) हे अर्जुन (कर्माणि) यह काम (प्रविभक्तानि) बांटे गए हैं। (स्वभाव) स्वभाव (प्रभवैः) प्रभाव (गुणै) गुणों के आधार पर ( न कि जन्म के आधार पर)।

अनुवाद

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, हे अर्जुन, यह काम बांटे गए हैं; स्वभाव, प्रभाव, गुणों के आधार पर। (न कि जन्म के आधार पर ) ।

नोट

Swami Mukundada translated this shlok as follow, Tranquitly, restraint, ansterily, punly, patience, integrily, knowledge, wisdom and belief in hereafter, these are the intrinsic qualities of world for Brahmins. (www.holy bhagavad-gita-org).