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विषय नं. 59 - धर्मनिरपेक्ष



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 28
श्लोक

शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्य से कर्मबंधनैः । सन्न्यासयोगमुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥28॥

शुभ अशुभ फलैः एवम् मोक्ष्यसे कर्म बन्धनैः। संन्यास योग युक्त आत्मा विमुक्तः माम् उपैष्यसि ॥२८॥

शब्दार्थ

(सन्यास योग) निस्वार्थ कर्म करो (फल की आशा न करो) (युक्त आत्मा) अपने आपको मेरी भक्ति में व्यस्त रखो (विमुक्तः) यही पापों से मुक्ति का मार्ग है ( एवम् ) इस तरह तुम (शुभ अशुभ फले) शुभ-अशुभ कर्मों के फल से (कर्म बन्धनैः) और अनिवार्य कर्तव्य के बन्धन से (मोक्ष्य से) मुक्त हो जाओगे (और) (माम-उपैष्यसि ) मुझे प्राप्त कर लोगे ( मेरे स्वर्ग को प्राप्त कर लोगे ) |

अनुवाद

निःस्वार्थ कर्म करो (फल की आशा न करो) अपने आपको मेरी भक्ति में व्यस्त रखो, यही पापों से मुक्ति का मार्ग है। इस तरह तुम शुभ अशुभ कर्मों के फल से और अनिवार्य कर्तव्य के बन्धन से मुक्त हो जाओगे और मुझे प्राप्त कर लोगे, मेरे स्वर्ग को प्राप्त कर लोगे। अर्थात निस्वार्थ कर्म करने से और ईश्वर की याद में लगे रहने से पाप भी नहीं होते और अनिवार्य कर्तव्य भी कुशलता से पूर्ण हो जाती है और मृत्यु के बाद मनुष्य स्वर्ग ही पाता है।