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विषय नं. 6 - ईश्वर के गुण



अध्याय नं. 5 ,श्लोक नं. 29
श्लोक

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् । सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥29॥

भोक्तारम् यज्ञ तपसाम् सर्वलोक महा-ईश्वरम् । सुहृदम् सर्व भुतानाम् ज्ञात्वा माम् शान्तिम् ऋच्छति ।।२९ ।।

शब्दार्थ

(भोक्तारम्) वह ईश्वर जिसके लिए सब ( यज्ञ) प्रार्थनाएं (तपसाम्) तपस्याएं की जाती हैं। (महा ईश्वरम् ) वह जो महान ईश्वर है। (सर्व लोक) सब लोगों का (सुहृदम् ) वह जो बहुत दया करने वाला है (सर्व भुतानाम् ) सभी प्राणीयों पर (माम् ) मुझे (अर्थात ईश्वर को) (ज्ञात्वा) जो ऐसा मानता है। (ऋच्छति) वह प्राप्त करेगा (शान्तिम् ) शान्ति के स्थान (स्वर्ग) को ।

अनुवाद

वह ईश्वर है जिसके लिए सब प्रार्थनाएं और तपस्याएं की जाती हैं। वह जो महान ईश्वर है सब लोगों का वह बहुत दया करने वाला है सभी प्राणीयों पर। मुझे (अर्थात ईश्वर को) जो ऐसा मानता है, वह प्राप्त करेगा शान्ति के स्थान (स्वर्ग) को ।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, तुम्हारा ईश्वर अकेला ईश्वर है। उसके सिवा कोई भी प्रार्थना के योग्य नहीं। वह कृपाशील और दयावान है। (सूरे-अल-बकरह (२) आयत नं. (१६३))