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विषय नं. 9 - ईश्वर की कृपा का महत्व:



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 59
श्लोक

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः । रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥59॥

विषयाः विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः । रस-वर्जम् रसः अपि अस्य परम् दृष्ट्वा निवर्तते ।। ५९ ।।

शब्दार्थ

(निराहारस्य) (मन को) नियंत्रित करके और (विषयाः) आनंद और भोग वाले वस्तूंओं से (विर्निवर्तन्ते) दूर रहने का अभ्यास (प्रयास) करके (देहिनः) मनुष्य (रस) आनंद लेने की इच्छा को (वर्जम) रोक सकता है। (अपि) किन्तु (रसः) मन में जो आनंद वाली वस्तुओं का आनंद बसा है। (अस्य) उसका (परम्) ईश्वर की (दृष्टवा) कृपा दृष्टी से ही (निवर्तते) अन्त होता है।

अनुवाद

(मन को) नियंत्रित करके, आनंद और भोग वाले वस्तूओं से दूर रहने का अभ्यास करके से मनुष्य आनंद लेने की इच्छा को रोक सकता है। किन्तु मन में जो आनंद वाली वस्तुओं का आनंद बसा है, उसका ईश्वर की कृपा दृष्टी से ही अन्त होता है।