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विषय नं. 9 - ईश्वर की कृपा का महत्व:



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 52
श्लोक

विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानस । ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः ॥52 ||

विविक्त-सेवी लघु-आशी यत वाक काय मानसः । ध्यान-योगपरः नित्यम् वैराग्यम् समुपाश्रितः ।।५२।।

शब्दार्थ

(विविक्त-सेवी) शांत स्थान पर रहो (लघु आशी) कम भोजन करो (यत वाक काय मानस:) वाणी, शरीर और मन को वश में रखो (ध्यान-योगपर: नित्यम्) ध्यान द्वारा सदैव अपने मन को ईश्वर के सम्पर्क में रखो । (समुपाश्रितः) ईश्वर की शरण लो (वैराग्यम्) निष्पक्ष रहो (आपके स्वभाव में न्याय हो) ।

अनुवाद

शांत स्थान पर रहो। कम भोजन करो। वाणी, शरीर, और मन को वश में रखो। ध्यान द्वारा सदैव अपने मन को ईश्वर के सम्पर्क में रखो। ईश्वर की शरण लो। निष्पक्ष रहो (आपके स्वभाव में न्याय हो) ।