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विषय नं. 2 - ईश्वर एक है



अध्याय नं. 7 ,श्लोक नं. 17
श्लोक

तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥17॥

तेषाम् ज्ञानी नित्य-युक्तः एक भक्तिः विशिष्यते ।
प्रियः हि ज्ञानिनः अत्यर्थम् अहम् सः च मम प्रियः ।।१७।।

शब्दार्थ

(तेषाम्) इन (चारों में) (ज्ञानी) (वह जो) ज्ञानी (है) (नित्य युक्तः) वह सदैव मेरी प्रार्थना में लगा रहता है (एक-भक्तिः) (और मुझ) एक ईश्वर की ही भक्ति करता है (विशिष्यते) वह श्रेष्ठ है (हि) क्योंकि (ज्ञानिनः) उस ज्ञानी को (अहम्) मैं (अत्यर्थम्) बहुत ही (प्रिय) प्रिय हूँ (च) और (सः) वह भी (मम) मुझे (प्रियः) (बहुत) प्रिय है।

अनुवाद

इन (चारों में) (वह जो) ज्ञानी (है) वह सदैव मेरी प्रार्थना में लगा रहता है। (और मुझ) एक ईश्वर की ही भक्ति करता है। वह श्रेष्ठ है, क्योंकि उस ज्ञानी को मैं बहुत ही प्रिय हूँ, और वह भी मुझे (बहुत) प्रिय है।

नोट

पवित्र कुरआन में लिखा है कि, अल्लाह के बन्दों में से सिर्फ ज्ञानवान लोग ही उससे ड़रते हैं। बेशक अल्लाह प्रभुत्वशाली और माफ करने वाला है। (सूरे फातिर ३५, आयत २८)