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विषय नं. 11 - ईश्वर के तेज अंश का वर्णन



अध्याय नं. 15 ,श्लोक नं. 7
श्लोक

श्रीभगवानुवाच ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।
मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥ 7 ॥

मम एवं अशः जीव-लोके जीवभूतः सनातनः ।
मनः षष्ठानि इन्द्रियाणि प्रकृति स्थानि कर्षति ।। ७ ।।

शब्दार्थ

(एरां) निसंदेह (जीव लोक) प्राणियों के इस जीव लोक के (जीवभूतः) जीवित प्राणि (माम) मेरे (सनातन:) हमेशा एक जैसा कायम रहने वाले (अंश) (तेज के) अंश (से) (स्थानि) स्थित (कायम) हैं। (मन:) (और मनुष्य) आत्मा (षष्ठानि) छ (इन्द्रियाणि) इच्छाऐं (प्रकृति) (और) भाग्य (कर्षति) (के कारण) सारे काम करता है।(जीव लोक, अर्थात यह धरती । स्वर्गलोक, अर्थात देवताओं का लोक। जीव-भूत, अर्थात जीवित प्राणी या मनुष्य का वर्णन, देवताओं या यक्ष का नहीं।)

अनुवाद

निःसंदेह! प्राणियों के इस जीव लोक के जीवित प्राणि मेरे हमेशा एक जैसा स्थित रहने वाले (तेज के) अंश (से) स्थित (कायम) हैं। और मनुष्य आत्मा छ इच्छाऐं, (और) भाग्य (के कारण) सारे काम करता है। कुरआन के अनुसार (सूरह ३ आयत १६) छ इच्छाए इस प्रकार है। १. पत्नी २ पुत्र ३. धन (सोना चांदी) ४. अच्छी सवारी ५. पशुधन ६. संपत्ति का होना।