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विषय नं. 12 - मनुष्य के गुण जो ईश्वर की महानता दर्शाते है



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 7
श्लोक

इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतना धृतिः।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥7॥

इच्छा द्वेषः सुखम् दुःखम् सङ्घातः चेतना धृतिः ।
एतत् क्षेत्रम् समासेन स-विकारम् उदाहृतम्।।७।।

शब्दार्थ

(सुखम् ) सुख (समृद्धि) (सडघातः) के साथ रहने की (इच्छा) इच्छा (दुःखम् ) दुःख (से) (द्वेषः) घृणा (चेतना) विवेक और बुद्धि का होना (धृतिः) धीरज का होना (एतत् ) इन सब (क्षेत्रम्) मनुष्य शरीर के गुणों के बारे में (स विकारम्) और भावनाओं के बारे में (उदाहृतम्) उदाहरण के साथ (समासेन) संक्षिप्त में (यहाँ वर्णन किया जा रहा है ) ।

अनुवाद

सुख (समृद्धि) के साथ रहने की इच्छा । दुःख (से) घृणा, विवेक और बुद्धि का होना । धीरज का होना। इन सब मनुष्य शरीर के गुणों के बारे में, और भावनाओं के बारे में उदाहरण के साथ संक्षिप्त में (यहाँ वर्णन किया जा रहा है)।