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विषय नं. 12 - मनुष्य के गुण जो ईश्वर की महानता दर्शाते है



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 9
श्लोक

इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च ।
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्॥9॥

इन्द्रिय अर्थेषु वैराग्यम् अनहङ्कारः एव च ।
जन्म मृत्यु जरा व्याधि दुःख दोष अनुदर्शनम् ।।९।।

शब्दार्थ

( इन्द्रिय अर्येषु ) मन को आनंद देने वाले वस्तुओं को (वैराग्यम्) छोड़ देना (इच्छा न रखना) (अनहङ्कारः) अहंकार की भावना को वश में रखना (एव च ) और नि:संदेह (जन्म) जन्म (मृत्यु) मृत्यु (जरा) वृद्धावस्था (व्याधि) बिमारी (दुःख) दु:ख (दोष) दोष (अपूर्णता) (अनुदर्शनम्) (के कारण और अवस्था को ) सदैव नजर में रखना।

अनुवाद

मन को आनंद देने वाले वस्तुओं को छोड़ देना (इच्छा न रखना)। अहंकार की भावना को वश में रखना और नि:संदेह, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था, बिमारी, दुःख, दोष (अपूर्णता) (के कारण और अवस्था को) सदैव नजर में रखना ।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा, यह परलोक का घर (स्वर्ग का स्थान) तो हम उन लोगों को देंगे जो धरती पर अपनी बड़ाई नहीं चाहते, और न बिगाड (फसाद/दंगे) पैदा करना चाहते हैं। और अच्छा अनजाम (अन्त) तो ईश्वर से डरने वालों के लिए है। (सूरह अल कसस २८, आयत-८३)