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विषय नं. 12 - मनुष्य के गुण जो ईश्वर की महानता दर्शाते है



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 10
श्लोक

असक्तिरनभिष्वङ्ङ्गः पुत्रदारगृहादिषु । नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु॥10॥

असक्तिः अनभिष्वडः पुत्र दार गृह-आदिषु ।
नित्यम् च सम-चित्तत्वम् इष्ट अनिष्ट उपपत्तिषु ।। ९० ।।

शब्दार्थ

(अनभिष्वङ्ग) संसार में अधिक रुचि न रखना ( दार) पत्नी ( पुत्र ) पुत्र (गृह-आदिषु) घर गृहस्थी ( के प्रेम में) (असक्तिः) न जकड़ना (इष्ट अनिष्ट) अच्छे और कठिन परिस्थितियों (उपपत्तिषु) का सामना हो तो (नित्यम्) सदैव (सम - चित्तत्वम्) धीरज रखना ( एक समान रहना )।

अनुवाद

संसार में अधिक रुचि न रखना। पत्नी, पुत्र, घर गृहस्थी ( के प्रेम में) न जकड़ना। अच्छे और कठिन परिस्थितियों का सामना हो तो सदैव धीरज रखना (एक समान रहना )।