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विषय नं. 16 - मूर्ति पूजा करने वालों का भविष्य



अध्याय नं. 12 ,श्लोक नं. 2
श्लोक

श्रीभगवानुवाच मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते । श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥

मयि आवेश्य मनः ये माम् नित्य युक्ताः उपासते। श्रद्धया परया उपेताः ते मे युक्त-तमाः मताः ।। २ ।।

शब्दार्थ

( श्री भगवान उवाच ) ईश्वर ने कहा, (ये) जो (मयि) मुझे (आवेश्य) स्थित करते हैं (मन) मन में (और) (नित्य) सदैव (युत्काः) लगे रहता है (माम्) मेरी (उपासते) उपासना में (मे) (और) मेरी (तरफ) (उपेताः) ध्यान लगाते हैं (श्रद्धया) इस श्रद्धा के साथ कि (प्रया) मैं दूसरों पर निर्भर हूँ (ते) वह (तमा) अज्ञान (युक्त) में युक्त हैं (मताः) (ऐसा) मेरा निर्णय है।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, जो मुझे स्थित करते हैं मन में, (और) सदैव लगे रहते हैं मेरी उपासना में, (और) मेरी (तरफ) ध्यान लगाते हैं इस श्रद्धा के साथ कि मैं दूसरों पर निर्भर हूँ। वह अज्ञान में युक्त हैं (ऐसा) मेरा निर्णय है।

नोट

(निर्भर होने का अर्थ है मनुष्य या कोई प्राणी होना । कारण कि जीवित रहने के लिए मनुष्य और प्राणी दूसरों पर निर्भर करते हैं।) मोनीयर विलीयम शब्द कोश में परया और उपेता के निम्नलिखित अर्थ बताए है। १ परया= दूसरों पर निर्भर करना। उपेता= संबोधित करना, मुखातिब होना। श्लोक नं. ११:४३ में ईश्वर को अप्रतिम कहा है। १३.१५ में ईश्वर को निर्गुण कहा है। १२.३ में न दिखाई देने वाला कहा है। इन शब्दों के आधार पर हमने श्लोक नं. १२.२ का अनुवाद किया है। पवित्र कुरआन में अज्ञानियों के बारे में लिखा है, “उन्होंने ईश्वर की कद्र (महत्त्व, अहमियत) न पहचानी जैसा कि उसके पहचानने का हक है। निःसंदेह ईश्वर ताकतवर और प्रभुत्वशाली है।” (सूरह अल-हज२२. आयत ७४)