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विषय नं. 17 - मूर्ति पूजा करने वालों का भविष्य



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 24
श्लोक

यदि उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् । संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥24॥

उत्सीदेयुः इमे लोकाः न कुर्याम् कर्म चेत् अहम् । संकरस्य च कर्ता स्याम् उपहन्याम् इमाः प्रजाः ।।२४।।

शब्दार्थ

(चेत) यदि (अहम) मैं (कर्म) (ब्रह्मांड के प्रबंध का) कर्म (न) न (कुर्याम्) करूँ तो (इमे) यह सब (लोकाः) संसार (उत्सीदेयुः) नष्ट हो जाए (च) और (यह सब प्रबंध केवल प्रलय के दिन तक है। प्रलय के अवसर पर) (इमाः प्रजाः) सर्व प्राणियों को (मैं) (संङ्करस्य) अनचाहे (वस्तू के समान ) ( उपहन्याम) नष्ट (कर्ता ) करने वाला (स्याम्) हूँ।

अनुवाद

यदि मैं (ब्रह्मांड के प्रबंध का) कर्म न करूँ तो यह सब संसार नष्ट हो जाए। और (यह सब प्रबंध केवल प्रलय के दिन तक है। प्रलय के अवसर पर ) सर्व प्राणियों को (मैं) अनचाहे (वस्तू के प्रकार) नष्ट करने वाला हूँ।