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विषय नं. 17 - प्रलय का वर्णन



अध्याय नं. 8 ,श्लोक नं. 22
श्लोक

पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया । यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥22॥

पुरुषः सः परः पार्थ भक्त्या लभ्यः तु अनन्यया । यस्य अन्तः स्थानि भूतानि येन सर्वम् इदम् ततम् ॥२२॥

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन (सः) वह (ईश्वर) (पुरुष) मनुष्य (होने से) (परः) परे है (तु) नि:संदेह (अनन्यया) किसी और (प्राणी या देवता) की भक्ति के बिना (भक्त्या) उसकी भक्ति करने से ही (लभ्यः) उसे प्राप्त किया जा सकता है (येन) (यह वह ईश्वर है) जिसके द्वारा (सर्वम्) सारे संसार का ( इदम्) यह (ततम्) स्तित्व है (यस्य) और जिसके द्वारा ( भुतानि ) सारे प्राणियों का (अन्तः) अंत (अर्थात प्रलय का) (स्थानि) स्थित होना है।

अनुवाद

हे अर्जुन! वह (ईश्वर) मनुष्य (होने से) परे है। नि:संदेह किसी और (प्राणी या देवता) की भक्ति के बिना उसकी भक्ति करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। (यह वह ईश्वर है) जिसके द्वारा सारे संसार का यह स्तित्व है और जिसके द्वारा सारे प्राणियों का अंत (अर्थात प्रलय का) स्थित होना है।