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विषय नं. 18 - प्रलय के दिन फिर से जीवित होने का वर्णन



अध्याय नं. 15 ,श्लोक नं. 10
श्लोक

उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम् ।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः ॥10॥

उत्क्रामन्तम् स्थितम् वा अपि भुज्जानम् वा गुण अन्वितम् ।
विमूढाः न अनुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञान चक्षुष ।। १० ।।

शब्दार्थ

(उत्क्रामन्तम्) मरने के बाद (स्थितम्) (प्रलय के दिन दोबारा) स्थित होना (वा अपि) और (भुज्जानम्) (वस्तुओं से) आनंद लेना (वा) या (गुण-अन्वितम्) (मरे हुए शरीर का सम्बन्ध ) गुणों से हो जाना (विमूढा:) (यह सारी बातें) मूर्ख और अज्ञानी (न) कभी नहीं ( अनुपश्यन्ति) समझ सकते (ज्ञान) (बल्कि इन्हें केवल) ज्ञान की (चक्षुष) आँखे रखने वाले लोग ही (पश्यन्ति) देख सकते हैं।

अनुवाद

मरने के बाद ( प्रलय के दिन दोबारा) स्थित (जीवित) होना, और (वस्तुओं से) आनंद लेना या ( मरे हुए शरीर का सम्बन्ध ) गुणों से होना, (यह सारी बातें) मूर्ख और अज्ञानी कभी नहीं समझ सकते । बल्कि इन्हें केवल ज्ञान की आँखे रखने वाले लोग ही देख सकते हैं।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, “और क्या इन लोगों को यह सुनाई नहीं देता कि जिस ईश्वर ने इस धरती और आकाश की रचना की और इनको बनाते हुए वह न थका, वह जरुर इसका सामर्थ्य रखता है कि मुर्दों को जिंदा उठाए? क्यों नहीं। निःसंदेह वह हर चीज़ का सामर्थ्य रखता है।" (सूरह अल अहकाफ ४६, आयत- ३३)