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विषय नं. 18 - प्रलय के दिन फिर से जीवित होने का वर्णन



अध्याय नं. 15 ,श्लोक नं. 11
श्लोक

यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् ।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः।।11।।

यतन्तः योगिनः च एनम् पश्यन्ति आत्मनि अवस्थितम् ।
यतन्तः अपि अकृत-आत्मानः न एनम् पश्यन्ति अचेतसः ।। ११ ।।

शब्दार्थ

(आत्मनि) अपने आप में (ध्यान लगाने वाले) (अवस्थितम्) धर्म की स्थापना के लिए (यतन्तः) प्रयास करने वाले (च) और (योगिन) ईश्वर से जुड़ने वाली प्रार्थना के लिए (यतन्त) प्रयास करने वाले (एनम्) इन सब बातों को) (पश्यन्ति) देख सकता है (समझ सकता है (अपि) किन्तु (आत्मानः) जो अपने आप में (ध्यान) (अकृत) नहीं लगाते (अचेतसः) ऐसे मूर्ख (एनम्) इन बातों को (न) नही (पश्यन्ति) देख सकते (समझ सकते हैं)।

अनुवाद

अपने आप में (ध्यान लगाने वाले), धर्म की स्थापना के लिए प्रयास करने वाले, और ईश्वर से जुड़ने वाली प्रार्थना के लिए प्रयास करने वाले, इन सब ( बातों को देख सकता है (समझ सकता है)। किन्तु जो अपने आप में (ध्यान) नहीं लगाते, ऐसे मूर्ख इन बातों को नहीं देख सकते (समझ सकते हैं ) ।