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विषय नं. 20 - अन्य लोक (मृत्यु के बाद जीवन) का वर्णने



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 38
श्लोक

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति ।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि ॥38॥

कच्चित् न उभय विभ्रष्टः छिन्न अभ्रम् इरा नश्यति । अप्रतिष्ठः महाबाहो विमूढः ब्रह्मणः पथि ।।३८।।

शब्दार्थ

(महाबाहो) हे कृष्ण (विमूढः) (जो व्यक्ती किसी) भ्रम में है (ब्राह्मण पथि) और ईश्वर के सत्य मार्ग पर ( अप्रतिष्ठः) स्थित न रह सका (कञ्चित) क्या वह (छिन्न उब्रम्) बिखरे हुए बादल ( इव) के समान (विभ्रष्टः) भटककर (उभय) दोनों (लोक में, अर्थात इस संसार और अन्य लोक में) (नश्यति) बरबाद (न) नहीं हो जाता?

अनुवाद

हे कृष्ण! (जो व्यक्ति किसी) भ्रम में है, और ईश्वर के सत्य मार्ग पर स्थित न रह सका। क्या वह बिखरे हुए बादल के समान भटककर दोनों (लोक में, अर्थात इस संसार और अन्य लोक में) बरबाद नहीं हो जाता ?