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विषय नं. 20 - अन्य लोक (मृत्यु के बाद जीवन) का वर्णने



अध्याय नं. 7 ,श्लोक नं. 5
श्लोक

अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥5॥

अपरा इयम् इतः तु अन्याम् प्रकृतिम् विद्धि मे पराम्।
जीव-भूताम् महा-बाहो यया इदम् धार्यते जगत् ।।५।।

शब्दार्थ

(तु) किन्तु (महाबाहो) हे अर्जुन (अपरा इयम्) इस हीन ( इतः) (पृथ्वी के) अतिरिक्त (मे) मेरी (पराम्) श्रेष्ठ (प्रकृतिम्) रचना (अन्याम्) अन्य लोक (विद्धि) को जानने का प्रयास करो (यथा) जिस पर (इदम् ) इस (जगत्) संसार के (जीव-भूताम् ) सारे प्राणियों की (सफलता या असफलता) (धार्यते) निर्भर करती है।

अनुवाद

किन्तु हे अर्जुन! इस हीन (पृथ्वी के ) अतिरिक्त मेरी श्रेष्ठ रचना अन्य लोक को जानने का प्रयास करो, जिस पर इस संसार के सारे प्राणियों की सफलता या असफलता) निर्भर करती है।

नोट

अन्य लोक को समझने के लिए नोट नं. N-4 पढ़िए।