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विषय नं. 20 - अन्य लोक (मृत्यु के बाद जीवन) का वर्णने



अध्याय नं. 8 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥20॥

परः तस्मात् तु भावः अन्यः अव्यक्तः अव्यक्तात् सनातनः । यः सः सर्वेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।।२०।।

शब्दार्थ

(तु) किन्तु (परः तस्मात) (ईश्वर द्वारा हर दिन निर्माण करने के ) बाद (भी) (भाव) (एक) निर्माण (है) (अन्य) (और वह है) अन्य लोक ( वह लोक जहाँ मनुष्य मृत्यु के बाद फिर जीवित किए जाएंगे और फिर वहाँ अन्तकाल तक रहेंगे) (अव्यक्तः अव्यक्तात्) जो न दिखाई देने वाली से अधिक न दिखाई देने वाली है। (सनातनः) सदा स्थित रहने वाली है। (यः सः) और वह जो (सर्वेषु ) सारे (भुतेषु) प्राणियों ( नश्यत्सु) मृत्यु पर भी (विनश्यति ) (जिसका) विनाश (न) नहीं होगा।

अनुवाद

किन्तु (ईश्वर द्वारा हर दिन निर्माण करने के) बाद (भी) (एक) निर्माण (है) (और वह है) अन्य लोक (वह लोक जहाँ मनुष्य मृत्यु के बाद फिर जीवित किए जाएंगे और फिर वहाँ अन्त काल तक रहेंगें) जो न दिखाई देने वाली की अपेक्षा न दिखाई देने वाली है। सदा स्थित रहने वाली है और वह जो सारे प्राणियों के मृत्यु पर भी (जिसका) विनाश नहीं होगा।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, क्या इन लोगों ने देखा नहीं कि ईश्वर कैसे पहली बार पैदा करता है, फिर उसकी पुनरावृत्ती करता है। (बार-बार पैदा करता है)। निश्चय ही यह (पुनरावृत्ती) ईश्वर के लिए सरल है। (हे मुहम्मद) कहो, धरती में चलो-फिरो और देखो कि उसने कैसे पहली बार पैदा किया है? फिर ईश्वर ही दूसरी बार (प्रलय के दिन) उठायेगा। निस्संदेह ईश्वर को हर चीज़ का सामर्थ्य प्राप्त है। (सूरह अल अनकबूत २९, आयत १९ २०)