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विषय नं. 21 - मोक्ष का वर्णने



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 5
श्लोक

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥5॥

दैवी सम्पत् विमोक्षाय निबन्धाय आसुरी मता। मा शुचः सम्पदम् दैवीम् अभिजातः असि पाण्डव ।। ५ ।।

शब्दार्थ

(मता) (ईश्वर ने कहा) यह मेरा निर्णय है कि (दैवी) दिव्य (सम्पत्) गुण (विमोक्षाय) ईश्वर की क्षमा की तरफ ले जाते हैं (आसुरी) आसुरी (शैतानी) गुण (निबन्धाय) ईश्वर की पकड़ की तरफ ले जाते हैं (पाण्डव) (किन्तु) हे अर्जुन (शुच:) (तुम) चिंता (मा) मत करो (दैवीम् ) (कारण कि तुमने) दिव्य (सम्पदम्) गुणों के साथ (अभिजात:) जन्म लिया (असि) है।

अनुवाद

(ईश्वर ने कहा) यह मेरा निर्णय है कि दिव्य गुण ईश्वर की क्षमा की तरफ ले जाते हैं। आसुरी गुण ईश्वर की पकड़ की तरफ ले जाते हैं। (किन्तु) हे अर्जुन (तुम) चिंता मत करो (कारण कि तुमने) दिव्य गुणों के साथ जन्म लिया है ।