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विषय नं. 22 - रूह का वर्णने



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 26
श्लोक

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् । तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ।।26।।

अथ च एनम् नित्यजातम् नित्यम् वा मन्यसे मृतम् । तथा अपि त्वम् महाबाहो एराम न शोचितुम् अर्हसि ॥२६॥

शब्दार्थ

(अथ) फिर भी (त्वम) (अगर) तुम (मन्यसे) सोचते हो की (एनम्) यह (रुह) (नित्यम्) जातम् हमेशा जन्म लेने वाली हैं (वा) या (नित्यम मृतम्) हमेशा मरने वाली है। (अवश्य तथा ) तब भी (महाबाहो) हे अर्जुन ( एवम्) इस जन्म और मृत्यु के विषय में (अर्हसि) तुम्हें इतनी (शोचितुम) चिन्ता (न) नहीं करनी चाहिए।

अनुवाद

फिर भी यदि तुम सोचते हो कि यह (रुह) हमेशा जन्म लेने वाली हैं या हमेशा मरने वाली है। तब भी हे अर्जुन इस जन्म और मृत्यु के विषय में तुम्हें इतनी चिन्ता नहीं करनी चाहिए।