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विषय नं. 22 - रूह का वर्णने



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 27
श्लोक

जातस्त हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥27।।

जातस्य हि ध्रुवः मुत्युः ध्रुवम् जन्म मृतस्य च । तस्मात् अपरिहार्ये अर्थे न त्वम् शोचितुम् अर्हसि ।।२७।।

शब्दार्थ

(हि) नि:संदेह (जायस्य) जिसने जन्म लिया (धवः) वह अवश्य (मृतस्य) मृत्यु पाएगा (तस्मात्) इसलिए (धवम् ) यह भी अटल है कि (जनम मृतस्थ) हम जन्म और मरन (अपरिहार्य) की घटना से बच नहीं सकता। (त्वम) इसलिए हे अर्जुन तुम्हें इस विषय में (शोचितुम ) इतनी चिंतीत (न) नहीं (अर्हसि ) होना चाहिए।

अनुवाद

निःसंदेह! जिसने जन्म लिया वह अवश्य मृत्यु पाएगा। इस लिए यह भी अटल है कि हम जन्म और मृत्यु की घटना से बच नहीं सकते। इसलिए हे अर्जुन! तुम्हें इस विषय में इतनी चिंतित नहीं होना चाहिए।