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विषय नं. 22 - आत्मा का वर्णने



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 30
श्लोक

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत । तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ||30॥

देही नित्यम् अवध्यः अयम् देहेसर्वस्य भारत । तस्मात् सर्वाणि भूतानि न त्वम् शोचितुम् अर्हसि ।। ३० ।।

शब्दार्थ

(भारत) हे अर्जुन (अथम्) यह ( रुह ) (देहेसर्वस्य) जो सब मनुष्यों के (देही) शरीर में है (नित्यम्) यह अमर है। (अवध्य) और इसकी हत्या नहीं की जा सकती। (त्वम्) इसलिए तुम्हें (सर्वणि) सब (भूतानि) प्राणियों के मृत्यु पर भी (शोचितुम ) इतना शोक (न) नहीं (अर्हसि) करना चाहिए।

अनुवाद

हे अर्जुन! यह (रुह) जो सब मनुष्यों के शरीर में है यह अमर है। और इसकी हत्या नहीं की जा सकती। इसलिए तुम्हें सब प्राणियों के मृत्यु पर भी इतना शोक नहीं करना चाहिए।

नोट

और जो लोग ईश्वर के मार्ग में मारे जाएँ उन्हें मूर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित हैं, परन्तु तुम्हें एहसास नहीं होता ( तुम्हें इसका ज्ञान नहीं)। (पवित्र कुरआन, सूरे- अल बकरह (२) आयत (१५४) अनुवाद-मुहम्मद फारुक खाँ)