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विषय नं. 24 - जीवन में परीक्षा का वर्णने



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 5
श्लोक

सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥5॥

सत्वम् रजः तमः इति गुणाः प्रकृति सम्भवाः ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनम् अव्ययम् ॥५॥

शब्दार्थ

(महा-बाहो) हे महान भुजाओं वाले (अर्जुन) (सत्वम्) सत्व (रज:) रजो (तम:) तमो (इति) यह (तीन) (गुणा) गुण (प्रकृति) ईश्वर ने (सम्भवाः) बनाए हैं। (अव्ययम्) अविनाशी (ईश्वर ने उन्हें (देहिनम्) शरीर वाले मनुष्य के (देहे) शरीर से (निबध्नन्ति) बांध दिया है।

अनुवाद

हे महान भुजाओं वाले (अर्जुन)! सत्व, रजो, तमो गुण यह (तीन) गुण ईश्वर ने बनाए हैं। अविनाशी (ईश्वर ने उन्हें शरीर वाले मनुष्य के शरीर से बांध दिया है।