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विषय नं. 25 - स्वर्ग का वर्णने



अध्याय नं. 8 ,श्लोक नं. 26
श्लोक

शुक्ल कृष्णे गती होते जगतः शाश्वते मते । एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ॥26॥

शुक्ल कृष्णे गती हि एते जगतः शाश्वते मते । एकया याति अनावृत्तिम् अन्यया आवर्तते पुनः ||२६||

शब्दार्थ

(मते) मेरे द्वारा (शाश्वते) वेदों में भी। (मृत्यु के बाद) (जगतः) (इस) लोक (से) (गती) (जाने के लिए दो) रास्ते (मार्ग बताए गए हैं) (एते) इन (दोनों मार्ग में) (हि) नि:संदेह (शुक्ल) (एक) प्रकाशित मार्ग है (कृष्णे) (और दुसरा) अंधेरे (का मार्ग है) (एक्य) एक मार्ग (अनावृत्तिम् ) स्वर्ग की ओर (याति) जाता है ) (ओर) दुसरा (मार्ग) (पुनः आवर्तते) नर्क की ओर जाता है (जहाँ जीवन मृत्यु का कर्म चलता रहता है)

अनुवाद

मेरे द्वारा वेदों में भी ( मृत्यु के बाद) (इस) लोक (से) (जाने के लिए दो) रास्ते (मार्ग बताए गए हैं)। इन (दोनों मार्ग में) नि:संदेह (एक) प्रकाशित मार्ग है। (और दुसरा) अंधेरे (का मार्ग है)। एक मार्ग स्वर्ग की ओर जाता है (और) दुसरा (मार्ग ) नर्क की ओर जाता है (जहाँ जीवन मृत्यु का कर्म चलता रहता है)

नोट

८.२६ इस श्लोक में पुन: आवर्तत नरक के लिए कहा गया है। प्रलय के दिन जब ईश्वर में श्रद्धा रखने वाले लोगों को स्वर्ग में जाने की अनुमती मिलेगी और जब वे स्वर्ग की ओर जा रहे होंगे उस समय का वर्णन पवित्र कुरआन में इस प्रकार है। "जिस दिन (प्रलय के दिन) तुम ईश्वर में श्रद्धा रखने वाले पुरुषों और स्त्रियों को देखोगे कि उनका प्रकाश उनके आगे-आगे दौड़ रहा है और उनके दाहिने हाथ में है। (और उनसे कहा जाएगा कि) आज तुम्हें (स्वर्ग के) ऐसे ऐसे उद्यानों की शुभ-सूचना है जिनके नीचे नहरें बह रही हैं। जिनमें सदैव रहना है। यही है सबसे बड़ी सफलता। (सूरे-अल-हदीद (हदीद) (५७) आयत (१२))