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विषय नं. 26 - स्वर्ग के लिए योग्याता



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 72
श्लोक

एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति । स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥72॥

एषा ब्राह्मो स्थितो पार्थ एवम् प्राप्य विमुह्यति । स्थित्वा अस्याम् अन्तकाले अपि ब्रह्म-निर्वाणम् ऋच्छति ।। ७२ ।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन (एषा) यही (ब्राह्मी) ईश्वर की श्रद्धा को हृदय में (स्थितो) (दृढ़ता से) स्थित (करने का मार्ग है।) (एवम् ) इस (दृढ़ श्रद्धा को) (प्राप्य) प्राप्त करके (विमुह्यति) कोई मोहित नहीं होता, सत्य मार्ग नहीं भूलता (अस्याम्) जो इस स्थिती में (अन्तकाले) मृत्यु तक (स्थित्वा) जमा रहता है। (अपि) नि:संदेह (ब्रह्म) वह ईश्वर के (निर्वाणम्) शान्ती के धाम (स्वर्ग) (ऋच्छति ) प्राप्त कर लेता है।

अनुवाद

हे अर्जुन, यही ईश्वर की श्रद्धा को हृदय में (दृढ़ता से) स्थित (करने का मार्ग है।) इस (दृढ़ श्रद्धा को) प्राप्त करके कोई मोहित नहीं होता, सत्य मार्ग नहीं भूलता। जो इस स्थिती में मृत्यु तक जमा रहता है, नि:संदेह वह ईश्वर के शान्ती के धाम (स्वर्ग) प्राप्त कर लेता है।

नोट

नालंदा विशाल शब्दकोश में 'निर्वाण' का अर्थ है, बुझा हुआ दीपक, अग्नि, आदि २. अस्त, डुबा हुआ ३. शांत ४. मृत / मरा हुआ ५. निश्चल ६. शून्यता को प्राप्त ७. बिना बाण के (शान्ति, मोक्ष)