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विषय नं. 26 - स्वर्ग के लिए योग्याता



अध्याय नं. 4 ,श्लोक नं. 39
श्लोक

श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः ।
ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥39॥

श्रद्धा-वान् लभते ज्ञानम् तत-परः संयत इन्द्रियः | ज्ञानम् लकवा पराम् शान्तिम् आचिरेण अधिगच्छति ।। ३९ ।।

शब्दार्थ

( श्रद्धा-वान्) जिसकी ईश्वर में दृढ श्रद्धा है। (इन्द्रियः) और जिसने अपने इन्द्रियों को (संयत) वश में कर लिया है। (ज्ञानम्) (वही) इस दिव्य ज्ञान को ( लभते ) प्राप्त करता है। (ज्ञानम्) इस दिव्य ज्ञान ( के अनुसार प्रार्थना करके) (तत-पर) (वह) उस महान ईश्वर (का आशिर्वाद) (लभते) भी पा लेता है (फिर) (आर्चरेण) विलंब न करते हुए वह ( पराम) महान (ईश्वर का ) (शान्तिम ) शान्ति स्थान (स्वर्ग) भी (अधिगच्छति) प्राप्त कर लेता है।

अनुवाद

जिसकी ईश्वर में दृढ श्रद्धा है, और जिसने अपने इन्द्रियों को वश में कर लिया है| (वही) इस दिव्य ज्ञान को प्राप्त करता है। इस दिव्य ज्ञान (के अनुसार प्रार्थना करके) (वह) उस महान ईश्वर (का आशिर्वाद) भी पा लेता है। (फिर) विलंब न करते हुए वह महान ( ईश्वर का) शान्ति स्थान (स्वर्ग) भी प्राप्त कर लेता है।