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विषय नं. 26 - स्वर्ग के लिए योग्याता



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 35
श्लोक

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा ।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्॥35॥

क्षेत्र क्षेत्र ज्ञयोः एवम् अन्तरम् ज्ञान चुक्षुषा भूत प्रकृति मोक्षम् च ये विदुः यान्ति ते परम्।।३५।।

शब्दार्थ

(ये ) जो लोग (क्षेत्र) मनुष्य के शरीर को (क्षेत्र ज्ञयो) मनुष्य को जानने वाले (ईश्वर के) ( अन्तरम् ) अन्तर को (ज्ञान) ज्ञान की (चक्षुषा) दृष्टि से देखते हैं। (ज्ञान के प्रकाश में देखते हैं और जानते हैं की ईश्वर रचयिता है, मनुष्य रचना है। दोनों कभी एक नहीं हो सकते) ( एवम् ) इसी तरह (वह) (भुत) प्राणियों को (और) (प्रकृति) प्रकृति (सृष्टि) को जानता है कि यह ईश्वर की रचना है। (च) और (मोक्षम्) ईश्वर से क्षमा मिलने के मार्ग को भी (विदू) जानता है (ते) वह लोग (परम) ईश्वर के परमधाम (स्वर्ग) को (यान्ति) पा लेते हैं।

अनुवाद

जो लोग मनुष्य के शरीर को और मनुष्य को जानने वाले (ईश्वर के) अन्तर को ज्ञान की दृष्टि से देखते हैं। (ज्ञान के प्रकाश में देखते हैं और जानते हैं कि ईश्वर रचयिता है, मनुष्य रचना है। दोनों कभी एक नहीं हो सकते) इसी तरह (वह) प्राणियों को (और) प्रकृति (सृष्टि) को जानता है कि यह ईश्वर की रचना है और ईश्वर से क्षमा मिलने के मार्ग को भी जानता है, तो वह लोग ईश्वर के परमधाम (स्वर्ग) को पा लेते हैं।

नोट

NA